मैं एक फ़रमान हूँ
तेरे लिए अहकाम हूँ
तुझ से कैसे डरूँ तू बता
मैं मुसलमान हूँ
तेरी हसरत नहीं होगी पूरी
तेरी तमन्ना रह जाएगी अधूरी
मैं जोड़ता इसमें ईमान हूँ
मैं मुसलमान हूँ
वहाँ पे तू बे-ज़बान होगा
बुरा तेरी अंजाम होगा
चार दिन की हुकूमत पे इतना नशा
मैं तो सदियों से सुल्तान हूँ
मैं मुसलमान हूँ
अपनी हरकत से किसी को न सता
सच्चाई जा कर अपनी सबको बता
बैठकर कुर्सी पे क्यों इतराता है तू
मैं तो दोनों जहाँ की जान हूँ
मैं मुसलमान हूँ
तेरी अच्छाई जंग खाने लगी
तेरी बुराई शर्माने लगी
आजा लग जा तू मेरे गले
मैं तेरा ईमान हूँ
मैं मुसलमान हूँ
तू न होगा कभी कामयाब
बताएगा अगर ख़ुद को साहब
आजा तू भी उसकी पनाह में
जिसका मैं भी ग़ुलाम हूँ
मैं मुसलमान हूँ
तेरी सोच बिल्कुल छोटी है
तेरे गुनाहों की पोटली मोटी है
कर ले तू भी उस रब से तौबा
जिसका मैं भी मेहमान हूँ
मैं मुसलमान हूँ
छोटों पर ज़ुल्म ढाता है तू
बे-ईमानी की खाता है तू
कर ले तू भी उससे मोहब्बत
जिसके सदके मैं भी इंसान हूँ
मैं मुसलमान हूँ
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~ मुहम्मद आसिफ अली (उर्दू शायर)
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